वांछित मन्त्र चुनें

स्तोमा॑सस्त्वा॒ गौरि॑वीतेरवर्ध॒न्नर॑न्धयो वैदथि॒नाय॒ पिप्रु॑म्। आ त्वामृ॒जिश्वा॑ स॒ख्याय॑ चक्रे॒ पच॑न्प॒क्तीरपि॑बः॒ सोम॑मस्य ॥११॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

stomāsas tvā gaurivīter avardhann arandhayo vaidathināya piprum | ā tvām ṛjiśvā sakhyāya cakre pacan paktīr apibaḥ somam asya ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स्तोमा॑सः। त्वा॒। गौरि॑ऽवीतेः। अ॒व॒र्ध॒न्। अर॑न्धयः। वै॒द॒थि॒नाय॑। पिप्रु॑म्। आ। त्वाम्। ऋ॒जिश्वा॑। स॒ख्याय॑। च॒क्रे॒। पच॑न्। प॒क्तीः। अपि॑बः। सोमम्। अ॒स्य॒ ॥११॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:29» मन्त्र:11 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:25» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:2» मन्त्र:11


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् (गौरिवितेः) वाणी को विशेष प्राप्त अर्थात् जाननेवाले आपके सङ्ग से (स्तोमासः) प्रशंसित (अवर्धन्) वृद्धि को प्राप्त हों, उनके साथ (वैदथिनाय) संग्राम करनेवाले से बनाये गये के लिये शत्रुओं का (अरन्धयः) नाश करो और जो (ऋजिश्वा) सरल कुत्ते के सदृश ही मनुष्य (पिप्रुम्) व्यापक (त्वा) आपको (सख्याय) मित्रपने के लिये (आ, चक्रे) अच्छे प्रकार कर चुका, उसके साथ (अस्य) इस जगत् के मध्य में (पक्तीः) पाकों का (पचन्) पाक करते हुए आप (सोमम्) ऐश्वर्य वा ओषधि के रस का (अपिबः) पान करिये और जो (त्वाम्) आपकी रक्षा करें, उन सबका आप सत्कार करिये ॥११॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे राजन् ! जो उत्तम गुणों से आपकी वृद्धि करते और आपको मित्र जानते हैं, उनको मित्र करके आप ऐश्वर्य की वृद्धि करो ॥११॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे राजन् ! गौरिवीतेस्तव सङ्गेन स्तोमासोऽवर्धंस्तैः सह वैदथिनाय शत्रूनरन्धयः। य ऋजिश्वेव पिप्रुं त्वा सख्यायाऽऽचक्रे तेन सहास्य पक्तीः पचंस्त्वं सोममपिबो ये त्वां पालयेयुस्तान् सर्वांस्त्वं सत्कुर्याः ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (स्तोमासः) प्रशंसिताः (त्वा) त्वाम् (गौरिवीतेः) यो गौरीं वाचं व्येति सः। गौरीति वाङ्नामसु पठितम्। (निघं०१.११) (अवर्धन्) वर्धन्तम् (अरन्धयः) हिंसय (वैदथिनाय) विदिथिना सङ्ग्रामकर्त्रा निर्मिताय (पिप्रुम्) व्यापकम् (आ) (त्वाम्) (ऋजिश्वा) ऋजिः सरलश्चासौ श्वा च (सख्याय) मित्रत्वाय (चक्रे) (पचन्) (पक्तीः) पाकान् (अपिबः) पिबेः (सोमम्) ऐश्वर्य्यमोषधिरसं वा (अस्य) जगतो मध्ये ॥११॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । हे राजन् ! ये शुभैर्गुणैस्त्वां वर्धयन्ति मित्रं जानन्ति तान् सखीकृत्य त्वमैश्वर्य्यं वर्धय ॥११॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजा ! जे उत्तम गुणांनी तुझी वृद्धी करतात व तुला मित्र समजतात त्यांना तू मित्र समज व ऐश्वर्य वाढव. ॥ ११ ॥